इतिहास से प्राप्त इसकी जानकारी विस्तृत रूप से नहीं वरन संक्षेप में प्रस्तुत है .-
1- कान्यकुब्ज:- प्राचीनकाल में कन्नौज को कान्यकुब्ज कहा जाता था. कान्यकुब्ज नाम कैसे पड़ा ? इसका उल्लेख बाल्मीकि रामायण में पाया जाता है . कुशनाभ राजा की सौ कन्याओं ने वायुदेवता के विवाह –प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था . वायुदेवता के प्रचंड कोप से वे कुबड़ी हो गयीं . संस्कृत भाषा में कुबड़ी को कुब्जा कहते है. कन्यायें कुब्जा हो गयीं, यह घटना जिस क्षेत्र /राज्य में हुई थी उसे “कान्यकुब्ज” कहा जाने लगा . वर्तमान समय में कान्यकुब्ज को कन्नौज कहा जाता है.
2- कान्यकुब्ज वैश्य:- हिन्दू धर्मग्रंथो में ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र चार वर्णों का उल्लेख आता है. धंधा-व्यापार,कृषि एवं गोपालन करने वालों को वैश्यवर्ग में रखा गया है. कृषिवाणिज्यगोरक्षम वैश्यकर्म स्वभावकम. हमारे पूर्वज मूलतः कान्यकुब्ज अर्थात कन्नौज के निवासी थे और व्यापार-धंधा करते थे. इसलिए उन्हें कान्यकुब्ज वैश्य कहा जाता है. ध्यान रहे कान्यकुब्ज ब्राह्मण भी होते हैं.
3- गोत्र:- धार्मिक एवं शुभ-मांगलिक प्रसंगों में गोत्र पूछा जाता है . हमलोग “कश्यप” ऋषि की संतानें हैं. हमारा गोत्र “कश्यप” है.
कान्यकुब्ज अर्थात कन्नौज बौध्दकाल में एक वैभवशाली राज्य था. यहाँ वैश्य जाति के राजा ग्रहवर्मन थे. इनकी मृत्यु के बाद मालवा नरेश देवगुप्त तथा गौड़ देश के राजा शशांक ने बारी-बारी से कान्यकुब्ज अर्थात कन्नौज पर आक्रमण कर दिया,जिससे वहां की सुरक्षा,अर्थव्यवस्था तथा व्यापार-धंधा सब अस्त-व्यस्त हो गया. सम्पूर्ण कान्यकुब्ज राज्य में भगदड़ मच गयी. हमारे पूर्वज जीविकोपार्जन हेतु कान्यकुब्ज राज्य से बाहर निकलकर भारतवर्ष के विभिन्न राज्यों में जाकर धंधा-व्यापार करने लगे. व्यापार-धंधे में सफल होने के बाद वे वहीँ स्थायी हो गए. वे अपने – अपने धंधे के अनुसार अपनी जाति का नाम रख लिए. जो लोग दाना भूनने अथवा चरवन का काम करते थे, वे भुर्जी ,भडभूजा, भुजवा,भूज आदि लिखने लगे तथा जो लोग पाकवस्तु-हलवा, मिठाई आदि बनाते थे, वे हलवाई लिखने लगे. इसीप्रकार अन्य लोग भी अपने-अपने धंधे के अनुसार अपनी जाति लिखने लगे.कुछ लोग कन्नौज से सम्बन्ध होने के कारण कन्नौजिया लिखते हैं. कुछ लोग परदेशी लिखते है. ध्यान रहे उत्तरप्रदेश के कुछ जिलों में धोबी जाति के लोग भी कन्नौजिया लिखते है. अधिकतर स्वजातीय बंधु गुप्त या गुप्ता लिखते है. इसका सम्बन्ध गुप्तकाल के शासकों से भी जोड़ा जाता है .
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